शनिवार, 5 सितंबर 2009

भावना

दो दिन पहले मैंने डॉक्टर राजशेखर रेड्डी जी के दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु के बारे में लिखा था। दो दिन बाद और ये स्थिती और ज्यादा ख़राब हो गई। उनके शोक में तक़रीबन १२५ से ज्यादा लोगों की मृत्यु ने और दिल बहला दिया। दाक्षिनात्य लोग हमेशा बहूत भावना प्रधान रहें हैं। अपने प्रियजनों के मन्दिर बनाना, उनके सालगिरह पे बड़ा केक लाना और बड़े जोर शोर से मानना जैसे कार्यक्रम तो चलते रहते हैं। श्री रामाराव के मृत्यु के बाद लगभग यही हाल था। लोगों की भावनाएं संभाली नही जाती और वो होश खो बैठते हैं।
लोग ऐसा क्यों करते हैं, इसके बारे में सायकाट्रिस्ट से बात करने का बाद पता चला के ये लोग ऊँची पायदान पे बैठे हुए लोगों को खुदा के बराबर मानते हैं। उनके प्रति उनके दिल में बहोत ही आदरणीय भावनाएं होती हैं इसीलिए अगर एखाद अच्छा और बुरा हादसा हो जाता हैं तो लोग बहूत ज्यादा रीअक्ट करते हैं। जो आम स्थिति से बिल्कुल अलग होता हैं ।
ये लोग इन हस्तियों को इतना बड़ा क्यों मानते हैं इसका मतलब हैं उनके हिसाब से ये व्यक्तियों ने वो कर दिखाया हैं जो आम लोगों के हद के बाद हैं। वे बड़े हैं क्यों की उनहोंने कुछ बड़ा करिश्मा कर दिखाया हैं और ऐसा कोई और नही हो सकता। देश के दुसरे हिस्से में ऐसा नही होता, क्यों की वे इन व्यक्तियों को इन नजरिये से नही देखते। लोग आनंद के और दुःख के समय रेअक्ट तो होते हैं लेकिन दाक्षिनात्य लोगों की तरह नही।