रविवार, 6 सितंबर 2009

टीचर्स डे

नमस्कार आज फ़िर आपसे रूबरू होते हुए मुजे काफी खुशी हो रही हैं। कल टीचर्स डे था। इस मौके पे आपने पुराने टीचर्स को मिलाने का, उनका हाल जानने का मौका मिला। टीचर्स भी अपने पुराने विद्यार्थियों से मिलकर काफी खुशी महसूस कर रहे थे। उनसे मिलने के बाद धुंधली हुई बादलों के परदे हट गए। फ़िर साफ़ दिखने लगा वो पुराना स्कूल का नजारा। कितने खुश थे हम उन दिनों। न कोई डर था न कोई गम। बिल्कुल जगजीत साहब की उस ग़ज़ल की इस वक्त याद आई ये दौलत भी ले लेलो ये शोहरत भी लेलो।
टीचर्स के मिलने के बाद आज के टीचर्स की भी याद आई। आज के शिक्षा प्रणाली के बारे में बातें भी हुई। उन टीचर्स को भी इस बात का मलाल था के आज ये कैसी शिक्षा हैं। शिक्षक आपने आपको इसे बाजार का इक हिस्सा मानते हैं। जैसा मांगो वैसा मिलेगा। फ़िर शिक्षक भी उसी तरह से मिल जाते हैं जैसे के बाजार का उत्पादन।
इसीलिए आज लोग खुलकर शिक्षकों के पक्ष में उसी तरह नही उतरते जिस तरह पिछले दिनों होता था। आज का अभिभावक भी उसी तरह का हैं। पुराने शिक्षकों का कहना था की हमें क्वालिटी के हिसाब से आगे आना चाहिए न की क्वांटिटी के हिसाब से। पुराने शिक्षकों ने ये भी आशा जताई के आने वाले कुछ दिनों में इसपर ध्यान दिया जायेगे और फ़िर एक नई आशी जाग उठेगी।
खैर ये तो आगे की बात हैं लेकिन टीचर्स डे के मौके पे आपने आप को फ़िर वोही याद फिरसे जगाने का मौका मिला। थैंक्स सभी टीचर्स। धन्यवाद् आपने हमें अच्छी शिक्षा दी, जिस की वजह से हम यहाँ हैं।