गुरुवार, 14 अक्तूबर 2010

जिस्म

चांदनी रात के उजालो में,
तेरा जिस्म दुधिया दिखता हैं।

तेरी झुकी नजर,
चिर के ले गयी लफ्ते जिगर,
खुले बालों ने जादू किया,
मदहोशी नींद उडाती हैं।

होश का आलम न पुछो,
मस्ती का आलम न पुछो,
जजबातों ने मचाया हैं कोहराम,
महक भी अब संदल सी लगती हैं।

हसीं समां हैं जवान है रात,
अब न हम हैं न हमारे जजबात,
दमकते हुए गुलाबी रुखसार,
अब दुनिया मचलती लगती हैं।