खालीपन बहुत सताता है
इस दौडती हुई दुनिया में
परेशानी देखी जा सकती है
हर एक के चेहरे पे.
बड़ी उदासी उन अँधेरी कोठरी में
मानो हंस रही हैं अपने आप पर
मन का आइना भी काले पत्थर की तरह
किसी अंजान पहाड़ का एक हिस्सा.
जीवन एक संगरहित पथ
दीवारें भी चुपचाप अकेली
अपना मानस भीतर व्यस्तता में मगन
सांसों के बिच द्वन्द का दहन.
ना कोई गतिविधि
हर जगह एकाकीपन
धरती के चारो खुंट
सारी ओर से जकड़े हुए.
ना कोई जीवनसाथी
हाथ में हाथ पकडे चलता
थक गए हैं सारे नयन
सपनों के सुनसान जंगल में.
शनिवार, 13 नवंबर 2010
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