शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2010

मकान

देखो महलों में रहनेवालों
हमारे तरफ भी जरा एक नजर उठाके देख लो
रहते हो तुम उस जहाँ में,
हमारे लिए भी कोई आसरा तो दो.

घर का मतलब ही क्या हैं हमारे लिए,
चार दिवारों के ऊपर एक टुटी फुटी छत,
बारिश के समय में होगा एक आसरा,
लगी ठण्ड तो होगा नंगे बदन को ढकने का सहारा.

आप के लिए घर पैसे जमा करने एक व्यापार हैं,
मिला तो सही नहीं मिला तो कई कारोबार हैं,
हमारे लिए वो जिन्दगी भर की पूँजी हैं,
पल पल मरकर जिने के लिए बनाया ताजमहल.

दर दर की ठोकरे खाकर,
हमने बनाया हैं आशियाँ,
हम ही जानते हैं घर का मतलब क्या हैं,
आप के लिए कुछ होगा हमारे लिए तो मंदिर है.

आज भी कईयों के सपने,
सच नहीं होते,
कई बार तो लगता हैं जिते ही हैं,
एक मकान के लिए.

कई करोड़ों के लिए ये,
आज भी एक सुहाना सपना है,
हर एक को लगता हैं,
हो न हो मकान अपना हैं.

कहते हैं मकान उजड़ी हुयी दुनिया बसाता हैं,
दुनिया एक घर नहीं तो और क्या हैं,
फिर भी लोग आज एक मकान के लिए दरबदर भटकते हैं,
मारे मारे दो गज जमीं के लिए अपना सर पटकते है.

सुबह

सुबह होती है और शुरुआत होती है,
जिंदगी के नये सफ़र की.

भोर की पहली किरण निकलते ही ,
वो मंदिरों से आती हुई शहनाई की आवाजें,
मस्जिदों से आती हुई अजान की पुकार,
नदी के किनारे स्नान करते हुए लोगों की प्रार्थनाएं.

बच्चों की स्कूल के लिए चल रही तय्यारी,
दूधवाला और पेपरवाला भी दौड़ रहे है,
हर को पहुंचना है सही समय पे,
किसको समय है दुसरे की तरफ देखने के लिए.

सुबह का उगता हुआ सूरज,
सबको सिखाता हैं जिने का अंदाज़,
कल क्या हुआ ये न सोचो,
आज क्या होगा इसके लिए तैयार रहो.

दिन ढलने से आई हुई थकान,
सुबह के ठंडी हवाओं की ताजगी,
देती हैं उर्जा फिरसे कम करने की,
ये सुबह बार बार देती हैं जनम.

हर सुबह नयी लगती है,
बिलकुल दुल्हन की तरह,
व्याकुल अपने हमसफ़र को मिलने को,
और नए घर को फिरसे सँवारने को.

सुबह आये तो महक उठे समां,
फुल खिल उठे और कोयल चहकने लगे,
वो सुनसान सा जंगल भी,
किसी शादी के मंडुए की तरह लगे.