बुधवार, 20 अक्तूबर 2010

अधूरापन

जब भी चाँद को देखते हैं,
अधूरापन नजर आता हैं हमें.

लावारिस सी भटक रही जिन्दगी,
खाली हाथ कटोरा लेके घूमते भिखारी,
और सुनसान सी गली में बंद पड़ा कमरा,
सभी एक जैसे दिखते हैं.
ऊजड़े गाँव, बंजर खेत,
बीमार माँ बाप और पापी पेट,
किसको सुनाये अपना हाल,
रोटी के लिए फिरता मायाजाल.

क्या आदमी आपने आप को पहचान पायेगा,
इन सारी खोखलेपन से निजात पायेगा,
फटे हुए छतों से अब बेबस चाँद नजर आता हैं,
झडे हुए पत्तों से शजर अधुरा सा नजर आता हैं.