शुक्रवार, 30 जुलाई 2021

चलो इक बार फिर से...

 


 न मैं तुमसे कोई उम्मीद रखूँ दिलनवाज़ी की

न तुम मेरी तरफ़ देखो गलत अंदाज़ नज़रों से
 
चलो इक बार फिर से, अजनबी बन जाएं हम दोनो...

साहिर लुधियानवी जी ने बेहद अंदाज मे लिखे हुई इस नज्म को रवी जी ने खुबसुरत संगीत से नवाजा है। महेंद्र कपूर जीने बेहतरीन तरिके से इसे गाया है। कई प्रेमी जब बिछडते है इसी गीत का सहारा लेते है। तार्रुफ़ रोग हो जाये तो उसको भूलना बेहतर, ताल्लुक बोझ बन जाये तो उसको तोड़ना अच्छा। मतलब पानी सर के उपर से जाए तो वो रिश्ता कोई भी हो उसे तोडना ही अच्छा होता है। कोई भी रोग जादा दिन तक सांभाल नही सकते। उसे अच्छे डॉक्टर पास जाकर उसपे इलाज करना बेहतर होता है। इश्क का हाल भी उसी तरह है।
वो अफ़साना जिसे अंजाम तक लाना ना हो मुमकिन, उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा। मतलब अगर कोई मंजिल तर ना पहुंचना हो तो रास्ता बदलना बेहतर होता है। इश्क का भी इसी तरह है। अगर वो मंजिल तक ना पहुंचता हो तो उसे अच्छा सा मोड देकर दुसरा रास्ता अपनाना पडता है।
हम कितना भी अच्छा रहने की कोशिश करे, लेकिन पता नहीं, लोग आपको किस नजरिए से देखेंगे। इसिलिए अपना काम करते रहो। लोगों की तरफ ध्यान मत दो। अच्छे काम करते रहो। आपको पता होता होता है, आप किस नजरिए से काम कर रहें है। काम करते रहो। इक ना इक दिन लोगों का नजरिया बदलेगा।