बुधवार, 29 सितंबर 2010

तेरे कदम

चलूँ मैं साथ तेरे
कदम से कदम मिलाके.

कई बार चलूँ तुझसे कन्धा मिलाके
हाथ से हाथ धरे साथ मिलाके.

कई बार चलूँ तेरे आगे
रास्तें पे बिखरे काँटों पे चलके.

तेरे पिछे चलने भी लगती हैं ख़ुशी
रक्खे हैं जिस मिटटी पे कदम तुमने.

तुम कहीं भी हो तो सच इतनासा हैं,
दिल के हर कोने बसा एक सपनासा हैं.

मंगलवार, 28 सितंबर 2010

बलम

जब सुबह उठती हूँ
सामने तुझको देखती हूँ .

रात भर मैंने जो सपने संजोये थे
मेहंदी भरे हाथों को सामने रखकर,
बहुत खुश हूँ उन्हें तुम्हारे
नजर से सच होते हुए देखकर.

सँवरते हुए बालोंको लेकर
अपने आप से उलझ जाती हूँ मैं,
छुते हो गेसुए बदन को तो
आँख चुराते शरमा सी जाती हूँ मैं.

तुम्हारी बाँहों में सुकून सा लगता हैं
आगोश में लेते हो जब तुम मुझे,
बाँवरे बालम तुझपे जान लुटा दूं मैं,
आँचल हटा कर देख लेते हो जब तुम मुझे.

सोमवार, 27 सितंबर 2010

दर्द का चेहरा

दर्द का चेहरा कैसे दिखता हैं.
मुरजाता या खुद पे इतराता.

कईयों में बस जाता हैं ये
कईयों को बेबस करता हैं ये.

इसका वजूद चेहरे पे दिखता हैं
दूर जाते हुए निशान छोड़ जाता हैं.

ये अपनासा भी लगता हैं
इससे बचाना सा भी लगता हैं.

इसके चेहरे के पीछे छुपा राज हैं
भेड़ियों की जमात का ये सरताज हैं .


रविवार, 26 सितंबर 2010

पेड़

ये हराभरा पेड़ यूँ ही कायम रहें
जीने के अंदाज़ यूँ ही कायम रहें.

पत्तों का हरापन ऐसे लगता हैं,
जैसे वतन लौट आया हुआ परदेसी.

शाखाओंका लचकना ऐसे
के मानो लड़की अल्हड सी.

फलों की बात ही कुछ और हो
जवानी का जोर कुछ और हो.

आज फूलों को भी उछलना सा लगता हैं
तितलियों की तरह उड़नासा लगता हैं.

यादे भी बिकुल पेड़ जैसी हैं
बढती हैं जैसे तरोताजा हो.

हवाओं की महक मानो
चन्दन जैसी लगती हो.

शनिवार, 25 सितंबर 2010

माँ

दुनिया की हर चीज प्यार बिना अधूरी हैं
बुलंदी की हर ख़ुशी माँ बिना अधूरी हैं.

हर एक कदम, हर एक सांस
जिन्दा होने का अहसास दिलाती है,
माँ की एक छोटीसी बात भी
कमजोरों में जान फूंक देती हैं.

माँ ने एक नजर देखा भी तो
सारे गम मिट जाते हैं ,
माँ ने फेरा हाथ सरपे तो
सारे जख्मों पे मरहम लग जाते हैं .

कभी भूकी कभी प्यासी रहके
उसने हमें संभाला हैं,
कभी चुपके कभी मुस्कुराके
माँ ने हमको पाला हैं.

अगर माँ न होती तो मैं भी न होता
आज मै भी उसके लिए बच्चा हूँ ,
जिन्दगी के कसौटी पे
उसीके सहारे मैं खड़ा सच्चा हूँ .

शुक्रवार, 24 सितंबर 2010

बादल

बदली हुयी रुतों के साथ
सतरंगी बादल दिखतें है

कुछ काले बादल
अनगिनत दुखों के
कुछ छटे बादल
रुकी हुयी जिन्दगी के.

बादल जो गरजते हैं
माँ से बिछड़ते हुए बच्चों की तरह,
बादल जो साफ़ हैं
दीखते हैं आईने की तरह.

उजले, नीले, गहरे न जाने कितने
बादलों के रूप नजर आते है
धुंदलाये हुए फिजाओं के तरह
जीवन को दर्शाते है.