रविवार, 26 सितंबर 2010

पेड़

ये हराभरा पेड़ यूँ ही कायम रहें
जीने के अंदाज़ यूँ ही कायम रहें.

पत्तों का हरापन ऐसे लगता हैं,
जैसे वतन लौट आया हुआ परदेसी.

शाखाओंका लचकना ऐसे
के मानो लड़की अल्हड सी.

फलों की बात ही कुछ और हो
जवानी का जोर कुछ और हो.

आज फूलों को भी उछलना सा लगता हैं
तितलियों की तरह उड़नासा लगता हैं.

यादे भी बिकुल पेड़ जैसी हैं
बढती हैं जैसे तरोताजा हो.

हवाओं की महक मानो
चन्दन जैसी लगती हो.

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