मंगलवार, 5 अक्तूबर 2010

हमार सैय्याँ

सैय्याँ हमार घर आवत हैं,
खुशियों की बहार आवत हैं.

सैय्याँ हमार बचपन,
रुठत हैं तो मनावत भी हैं,
दर्द होत तो रोवत भी हैं,
माँ बाप से बढ़कर प्यार करवत हैं.

सैयाँ हमार बगियन,
झूमता पेड़, नाचता आँगन,
शर्माता जैसे टपोरा बैंगन,
जीवन में हमार हरियाली छावत हैं.

सैय्याँ हमार पालनहार,
जीवन का असली गहना
पलमे भाई पलमे बहना,
मोती भी वोही सोना भी वोही लागत हैं.

उपरवाले से यही बिनती हमार,
दुबारा जनम दे तो यहीं हरबार,
सैय्याँ बिन अब जीना नहीं,
सैय्याँ बिन दुनिया परायी भावत हैं.