बुधवार, 16 सितंबर 2009

आख़िर हम भी तो इन्सान हैं

सांसद जयाप्रदाजी कुछ दिनों पहले अपने संसदीय क्षेत्र में बाढ़ से प्रभावित इलाकोंका दौरा करने निकली। पानी से निकलते हुए उन्हें डर लगा और वो डर के मारे रो पड़ी ऐसा हमने सुना और पढ़ा, ख़बर सुनके बड़ा दुःख और हसीं भी आई। दुःख इस बात का हुआ के देखो जयाप्रदाजी जैसे सांसद अपने क्षेत्र के लिए इतना कुछ करती हैं फिरभी कुछ लोग उन्हें भला बुरा कहने पे तुले हुए हैं। खैर छोड़ो हसीं इस बात की आई के जब उन्हें पानी से डर लगा तो वो रो पड़ी और उनके साथ जो लोग थे उन्हों ने उन्हें संभाला। क्या जमाना आ गया हैं नेताओंको उनके समर्थक अब संभाल रहें हैं।
लेकिन फ़िर भी जयाप्रदाजी को मानना पड़ेगा के उनका काम काबिले तारीफ हैं। पहले भी लोग बाढ़ पीडितों के लिए आगे आते थे। इंदिराजी एक बार हाथी पे बैठ के ऐसे इलाकों में गई भी थी। लेकिन आज के दौर में जब हर साधन पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं फ़िर भी लोगों के प्रति आस्थाएँ कम नही हुई। पानी से बैर नही अच्छा ये तो हमने सुना भी हैं, जिनका पानी से तभी सम्बन्ध आता हैं, जो केवल अपने घर के तालाब में नहाते हैं, वे लोगों की आपबीती सुनते हैं ये अच्छा हैं।
डर किसको नही लगता सभी को लगता हैं। कुछ लोग बातें तो बड़ी बड़ी करते हैं लेकिन जब कठिन समय आता हैं तो घर में छुप जाते हैं ये भी हमने देखा हैं। हर व्यक्ति कभी न कभी डरा तो होगा, लेकिन हमें जयाजी को कुछ कहने से पहले आपने आप में भी झांकना होगा के शीशे के घर में रहकर हम उनपे पत्थर नही मार सकते क्यों के हम भी किसी वक्त डर गए होंगे। हम गाँधी जी नही हैं जो बिना डरे नौखाली के लोगों के बिच बिना डरे गए। चलो हम सभी एक नाव के माझी हैं।

मंगलवार, 8 सितंबर 2009

बिग बॉस

सुना हैं बिग बी यानी अपने अमिताभ बच्चन अब बिग बॉस में आ रहें हैं। वैसे हमें पहले ये तो पता नही था के ये बिग बॉस चीज है क्या। बिग बॉस का हमें पहले यही मालूम था के कुछ गिने चुने लोगों को किसी अनजान जगह पे रखा जाता हैं, फ़िर उनके हर एक मूवमेंट पे नजर रखी जाती हैं। उनकी विल पॉवर देखी जाती हैं। हाँ जैसे पहले कुछ एपिसोड में राखी सावंत, राहुल महाजन, मोनिका बेदी, राजा जैसे नामी हस्तियाँ थी। जिन्हें देखने के लिए लोग इडीयट बॉक्स के सामने बैठे रहते थे। हमें इसमे हिस्सा न लेने में कामयाब हुए कुछ लोगों के इंटर view भी देखना पड़े जैसे संजय निरुपम, रामदास आठवले जैसे लोग भी शामिल हैं।
लेकिन हमें ये समझ में नही आ रहा हैं के बिग बॉस में बिग बी क्या क्या काम मेरा मतलब हैं क्या रोल हैं। बिग बॉस में एक ऐसी व्यक्ति की आवाज आती रहती हैं जो परदे के पीछे से आती हैं। वो आवाज कुछ लगभग अमिताभ बच्चन जैसी थी लेकिन अब परदे पे सच में अमिताभ आ रहें हैं तो लोगों के उत्सुकता और बढ़ी होगी।
कुछ दिनों पहले हमने एक सेमिनार में टीवी मीडिया के लोगों को कहते हुए देखा था के टीआरपी के हिसाब से उनको ad मिलती हैं। और जिसका टीआरपी ज्यादा उस चैनल को लोग ज्यादा पसंद करते हैं। तो लोगों को बने रहने के लिए ऐसे शोव्स होना लाजमी हैं। पिचले कुछ दिनों पहले राखी सावंत का स्वयंवर आया था एक चैनल पे लोग चैनल पे नज़ारे जमा के बैठे थे की कौन होगा राखी का न होने वाला पति। बाद में पता चला की राखी को वो पति नसीब हो न हो उस चैनल का टीआरपी बढ़ा। अब लगता हैं कुछ इस टीआरपी बढ़ने के चक्कर में बिग बॉस में बिग बी आ रहे हैं। चलो उन लोगों को जिनको कुछ एक लोगों के हिसाब में कुछ काम नही ऐसे लोगों को देखने के लिए एक और शो आया। लगे रहो बिग बी.

सोमवार, 7 सितंबर 2009

चाइना जोरी

चाइना ने भारत के सीमा में घुसकर आपने चाइना नामके लाल पत्थर रंगायें और भारत के सीमा के अंदर करीब डेढ़ किलो मीटर क्षेत्र में आकर चीनी भाषा में कुछ अक्षर लिखे। कुछ दिनों पहले चीन ने भारतीय सीमा के हवाई क्षेत्र के अंदर आने की कोशिश की थी। चीन ऐसे क्यों कर रहा हैं, समझ में नही आता। उसका असली मकसद क्या हैं ये भी समझ नही पाते। लेकिन चीन जो कर रहा हैं वो भारत के हिसाब से अच्छा नही हैं।
जुलुंग ला पहाडियों के माउंट झा क्षेत्र में चीन ने आकर जो भारत के लिए लाल झंडा दिखाया हैं उससे हम सभी चिंतित हैं। खास कर के भारत के सैनिकी प्रमुख ने जब कहा के भारत चीन के हिसाब में बहुत पीछे हैं तबसे हम सब जान गए थे दुश्मन को पहले ही भारत में अपनी पीठ दिखाई हैं। इससे भारतीय सैनिकों का मनोबल आवश्य गिर गया हैं।
कुछ ही दिनों पहले कुछ भारतीय वैज्ञानिकों ने कहा था की पोखरण का अनु विस्फोट सफल नही हुआ था। कलाम ने इस पुष्टि को नकार दिया था ये कहना ठीक नही था। ऐसे कुछ शब्दों से सभी का मनोबल गिरता हैं खास करके सभी ऐसे लोग प्रेस के सामने ऐसे बयां देते हैं। इससे पड़ोस के देश भी हमें आँख दिखाने लगते हैं। जब अपनी ही चिडिया चुग गई खेत तो पछताने से क्या फायदा। जरूरत हैं के भारत के ताकत को मजबूत दिखने का प्रयास करे और अमन, शान्ति के साथ साथ दूसरों पर भी धाक जमायें रखें।

रविवार, 6 सितंबर 2009

टीचर्स डे

नमस्कार आज फ़िर आपसे रूबरू होते हुए मुजे काफी खुशी हो रही हैं। कल टीचर्स डे था। इस मौके पे आपने पुराने टीचर्स को मिलाने का, उनका हाल जानने का मौका मिला। टीचर्स भी अपने पुराने विद्यार्थियों से मिलकर काफी खुशी महसूस कर रहे थे। उनसे मिलने के बाद धुंधली हुई बादलों के परदे हट गए। फ़िर साफ़ दिखने लगा वो पुराना स्कूल का नजारा। कितने खुश थे हम उन दिनों। न कोई डर था न कोई गम। बिल्कुल जगजीत साहब की उस ग़ज़ल की इस वक्त याद आई ये दौलत भी ले लेलो ये शोहरत भी लेलो।
टीचर्स के मिलने के बाद आज के टीचर्स की भी याद आई। आज के शिक्षा प्रणाली के बारे में बातें भी हुई। उन टीचर्स को भी इस बात का मलाल था के आज ये कैसी शिक्षा हैं। शिक्षक आपने आपको इसे बाजार का इक हिस्सा मानते हैं। जैसा मांगो वैसा मिलेगा। फ़िर शिक्षक भी उसी तरह से मिल जाते हैं जैसे के बाजार का उत्पादन।
इसीलिए आज लोग खुलकर शिक्षकों के पक्ष में उसी तरह नही उतरते जिस तरह पिछले दिनों होता था। आज का अभिभावक भी उसी तरह का हैं। पुराने शिक्षकों का कहना था की हमें क्वालिटी के हिसाब से आगे आना चाहिए न की क्वांटिटी के हिसाब से। पुराने शिक्षकों ने ये भी आशा जताई के आने वाले कुछ दिनों में इसपर ध्यान दिया जायेगे और फ़िर एक नई आशी जाग उठेगी।
खैर ये तो आगे की बात हैं लेकिन टीचर्स डे के मौके पे आपने आप को फ़िर वोही याद फिरसे जगाने का मौका मिला। थैंक्स सभी टीचर्स। धन्यवाद् आपने हमें अच्छी शिक्षा दी, जिस की वजह से हम यहाँ हैं।

शनिवार, 5 सितंबर 2009

भावना

दो दिन पहले मैंने डॉक्टर राजशेखर रेड्डी जी के दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु के बारे में लिखा था। दो दिन बाद और ये स्थिती और ज्यादा ख़राब हो गई। उनके शोक में तक़रीबन १२५ से ज्यादा लोगों की मृत्यु ने और दिल बहला दिया। दाक्षिनात्य लोग हमेशा बहूत भावना प्रधान रहें हैं। अपने प्रियजनों के मन्दिर बनाना, उनके सालगिरह पे बड़ा केक लाना और बड़े जोर शोर से मानना जैसे कार्यक्रम तो चलते रहते हैं। श्री रामाराव के मृत्यु के बाद लगभग यही हाल था। लोगों की भावनाएं संभाली नही जाती और वो होश खो बैठते हैं।
लोग ऐसा क्यों करते हैं, इसके बारे में सायकाट्रिस्ट से बात करने का बाद पता चला के ये लोग ऊँची पायदान पे बैठे हुए लोगों को खुदा के बराबर मानते हैं। उनके प्रति उनके दिल में बहोत ही आदरणीय भावनाएं होती हैं इसीलिए अगर एखाद अच्छा और बुरा हादसा हो जाता हैं तो लोग बहूत ज्यादा रीअक्ट करते हैं। जो आम स्थिति से बिल्कुल अलग होता हैं ।
ये लोग इन हस्तियों को इतना बड़ा क्यों मानते हैं इसका मतलब हैं उनके हिसाब से ये व्यक्तियों ने वो कर दिखाया हैं जो आम लोगों के हद के बाद हैं। वे बड़े हैं क्यों की उनहोंने कुछ बड़ा करिश्मा कर दिखाया हैं और ऐसा कोई और नही हो सकता। देश के दुसरे हिस्से में ऐसा नही होता, क्यों की वे इन व्यक्तियों को इन नजरिये से नही देखते। लोग आनंद के और दुःख के समय रेअक्ट तो होते हैं लेकिन दाक्षिनात्य लोगों की तरह नही।

बुधवार, 2 सितंबर 2009

गणपति बाप्पा मोरया

जैसे के मैंने कल बताया था की ये जिंदगी कुछ अलग किस्म का रसायन हैं कभी हस्ता खिलता गुलाब हैं तो कभी काँटों भरा फूल। आज श्री गणेश जी का विसर्जन हो रहा हैं तो लगता हैं कुछ एक हिस्सा खो रहें हैं हम। श्री गणेश जी कब आयें और कब जा रहें ये पता ही नही चला। गणेश जी की धूम ने स्वाईन फ्लू के डर को थोड़ा कम तो कर दिया लेकिन आज के दिन गणपति बाप्पा के छोड़ जाने का गम भी बहुत हैं।
आज के दिन एक और बुरी ख़बर ने दिल दहला दिया वो थी आन्ध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री वाया आर एस राजशेखर रेड्डी जी की मौत की ख़बर। एक बहुत ही कामयाब, हरदिल अजीज व्यक्ति थे वोह। आन्ध्र प्रदेश को आगे ले जाने में उनकी बड़ी भूमिका थी। उनके साथ और चार लोगों की दर्दनाक हादसे में हुई मौत का बड़ा अफ़सोस हुआ। भगवन उनकी आत्मा को शान्ति दे और उनके परिवार को ये हादसे से उभरने की ताक़त दे।
आज का दिन बहूत उम्मीद भरा हैं। पीछलें दो दिनों से लगातार बारिश हो रहीं हैं, ये एक अच्छी ख़बर हैं खास कर किसानों के लिए, जिससे उनकी उम्मीद और बढेगी और ये आशा भी हैं के महंगाई थोडीसी कम होगी यही आशा हैं आज के दिन। धन्यवाद्.

स्वागत हैं आप का

दोस्तों आप सभी का स्वागत करते हुए मुझे काफी खुशी हो रही हैं। ब्लॉग एक माध्यम हैं ऐसे लोगों से जुड़ने का जिनके साथ रूबरू होने के अलावा उन लोगों से मिलने का अनुभव होता जिनसे हम सीधे तौर पे जुड़े नही। कई दिनों से ये चाहत थी की अपना भी एक ब्लॉग हो, जैसे लोगों की एक इच्छा होती है की अपना भी एक घर हो। कुछ दिनों पहले मुंबई में प्रोफ़ेसर अनीता जी के सेमिनार में शामिल कोने का अनुभव हां। उस वक्त मुझे भी लगा के अपना वो पुराना ब्लॉग वाला सपना पुरा करने का वोह वक्त आ गया है। पत्रकारिता के इस भीड़ और हर समय बिजी रहने की आदत ने मुझे वक्त ही नही मिला था लेकिन अब कुछ वक्त जरूर मिला और मैं ये ब्लॉग लिखने के लिए तैयार हो गया।

हाँ तो मैं बता रहा था के उस सेमिनार में मुझे काफी पिछडेपन का अहसास हो रहा था, अपना ब्लॉग बनने के लिए। अनिताजी भी मुजे बहूत बार कहा था के मैं अपना ब्लॉग शुरू करूँ। ब्लॉग के जरिये अपने दिल की बात कह सकूं। वैसे भी पत्रकार हर रोज लिखते रहते हैं लेकिन अपने पेपर के लिए। उसमे लोगों को क्या चाहिए उस हिसाब से ही लिख सकते हैं। उसमे अपने बारे में नही बता सकते। सो ये अच्छा जरिए हैं अपनी दिल की बात कही कही जाए।

इस ब्लॉग पे आने के बाद आशा हैं के बहूत ऐसे लोगों से मिल लूँ जो इस ब्लॉग के बारे में गुरु बन सकते हैं और हमें और मदद मिल सकती हैं। पहली बार लिख रहा हूँ तो बहूत कुछ कहने की ईच्छा हो रही हैं। लेकिन सोचता हूँ कुछ देर के लिए रुक जाऊं और अपने काम पुरे होने के बाद इसमे जी जान से जुट जाऊं। आशा हैं आप इसमे मुजे और मदद दे उसके साथ मेरी हौसला अफजाई करें।

धन्यवाद् और शुक्रिया.