जब सुबह उठती हूँ
सामने तुझको देखती हूँ .
रात भर मैंने जो सपने संजोये थे
मेहंदी भरे हाथों को सामने रखकर,
बहुत खुश हूँ उन्हें तुम्हारे
नजर से सच होते हुए देखकर.
सँवरते हुए बालोंको लेकर
अपने आप से उलझ जाती हूँ मैं,
छुते हो गेसुए बदन को तो
आँख चुराते शरमा सी जाती हूँ मैं.
तुम्हारी बाँहों में सुकून सा लगता हैं
आगोश में लेते हो जब तुम मुझे,
बाँवरे बालम तुझपे जान लुटा दूं मैं,
आँचल हटा कर देख लेते हो जब तुम मुझे.
मंगलवार, 28 सितंबर 2010
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