गुरुवार, 29 जुलाई 2021

गलतफहमी की सजा

 इक लडका था। उसे पढना काफ़ि पसंद था। कोई चीज अच्छी लगी तो काफ़ि तारीफ करना उसकी आदत थी। इक लडकी को वो काफ़ि अरसे से जानता था। उस लडकी की के साथ वो काफ़ि अदबी से बात करता था।

उस लडकी ने इक दिन लिखना शुरु किया। उसने लडके को पढने के लिए भेज दिया। लडके ने भी उसे पढके गलतियां निकाल के वापस भेज दिया। वो लडका उस लडकी के लिखावट से काफ़ि प्रभावित हुआ। उसने उस लडकी से कहा। आप काफ़ि अच्छा लिखती हैं। आपको पढना मुझे अच्छा लगता है।

फिर हर रोज


वो लडकी रोज लिखती और उस लडके को पढने भेजती। वो लडका वो हर रोज पढता और उस लडकी की हौसला आफजाई करता। उसका तरिका गरमजोशी का था।

ये सिलसिला काफ़ि दिनो तक चला। वो लडका भी लिखता। कुछ शायरी भी करता और उस लडकी को भेजता। वो लडकी भी उसकी हौसला अफजाई करती।

लडका दिल से लडकी के ब्लॉग की तारीफ करता। और कुछ और लगा तो बोलता भी। दोनो मे अच्छे ताल्लुकात थे।

इक दिन लडके ने कहा आज ब्लॉग नहीं लिखा क्या डिअर? मुझे पढना अच्छा लगता है। उस लडकी ने उसे अलग रूप से लिया। और उसने उसी लडके को व्हाट्स अँप पे ब्लॉक किया। उस लडके को समझ नहीं आया, उसका गुनाह क्या था। उसे बहुत बडा सदमा पहूंचा। उसे रात भर निंद नहीं आई। उसे कारण पुछने का वक्त नहीं मिला।  उसे कुछ भी नहीं सुझ रहा था। उसकी आँखे डबडबाई। वो अपने आपको कोसता हुआ चुप रहा। उसका दिल साफ था। उसमे कोई बुरी बात नहीं थी। लेकिन वो कुछ ना बोलते हुये चुप रहा। वो जानता था उस लडकी को गलती का अहसास जरूर होगा।