रविवार, 18 जुलाई 2021

हमदर्दी

जिंदगी एक सुलगती सी चिता है साहिर
जर्रे जर्रे में जान है प्यारे
जिंदगी इस कोरोना के बाद एक सुलगती सी चिता बन गई है।  पता नहीं कब किसी गली की मोड़ पर शाम हो जाएँ।  गंगा में बह रहें शव आज इस बेबसी का आलम बता रहें हैं की, मरने के बाद आने वाले दिनों का क्या हाल है। बहरहाल इस जिंदगी से गले लगाना सीखें। सभी के साथ अच्छा बर्ताव करे। इस कोरोना काल में हमने कई अपनों को खोया है। कितनों ने कैसी जिंदगी बसर की है तनहा तनहा पता नहीं। उनका दुख हम नहीं बता सकते।  काश इस दुनिया का दुख हम बाँट सकते और उनके जख्मों पे मरहम लगा सकते।  फ़िलहाल हम उन सभी के प्रति अपनी हमदर्दी बाँट सकते हैं। उन सभी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा हूँ मैं। आने वाले दिनों में सारा समाज एक होकर ऐसे दिनों का सामना करने के लिए प्रतिबद्ध होगा ऐसी अपेक्षाएं है।  शुक्रिया।