रविवार, 21 नवंबर 2010

तुम

कितने दिनों के बाद मिली हो
क्या अब भी तुम वैसी ही हो?

अजीब चेहरों से उलझे हुए
सवालों के सायें से लिपटे हुए
अनगिनत नजरों को तुम
अपनीसी लगती थी
क्या अब भी तुम वैसी ही हो?

हसीं पलों में हर एक चाहता था
उन लम्हों की तुम साजदार बनो
अपनी खुबसूरत सी हसी बिखेरकर
सब को आबाद करो
क्या अब भी तुम वैसी ही हो?

परेशानी किसको नहीं होती?
लेकिन तुम्हारी जुल्फों के साए में
चमकती धुप भी
छाँव की तरह लगती थी
क्या अब भी तुम वैसी ही हो?

जिन्दगी के मायने बदल गए है
जीने के अंदाज़ भी कुछ अलग लगते है
इस हैरान सी वीरानी में
एक साथ भी जरुरी है
क्या अब भी तुम वैसी ही हो?

5 टिप्‍पणियां:

  1. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना का लिंक मंगलवार 23 -11-2010
    को दिया गया है .
    कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..


    http://charchamanch.blogspot.com/


    कृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...

    वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
    डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया .

    जवाब देंहटाएं
  2. कुछ बातें कभी नहीं बदलती...
    शायद वो वैसी ही हो!!!

    जवाब देंहटाएं