मंगलवार, 30 नवंबर 2010

दूर

बुझ गए उम्मीद के चराग
सपनों की लौ बुझ गयी
आशाओं के फूल कुम्हला गए
उसके दूर चले जाने से.

तमन्ना बड़ी देर से मचली थी
मिलने की आस यूँ ही निकली थी
बह गयी सारी यादें
आसुओंकी तूफानी बाढ़ से.

डूबती नैय्या जीवन की
संकट की घडी अमावस की
दूर गूंजती हुयी शहनाई
मलती है रक्त का अबीर.

सहमी हुए रातों में
थके हारे बोझल हाथों में
सन्नाटेपन की सरसराहट
नियतीने भी दिया धोखा.

जीवन अब समाप्त हो गया
यादों के मेले कबके खत्म हुए
अकेला रह गया है शायद नसीब
दोष दे तो देभी किसें.

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