शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012

आज कल पांव

आज कल पांव नहीं पड़ते मेरे, देखा हैं तुमने मुझे उड़ते  हुए. गुलजार साहब ने ये लिखा हुआ गीत बहुत ही सुन्दर हैं. आज कल हर एक को चलने  की  फुर्सत  ही नहीं हैं. सब लोग अपने अपने काम में इतने व्यस्त हैं के उन्हें विचार करने तक का समय नहीं मिलता. सभी लोग उड़ना चाहते हैं वो भी कम समय में. 
लोगों के चन्द मिनिटों में वो सुब कुछ चाहिए जिसे पाने के लिए कुछ घंटे लग सकते हैं. कोई रुकने के लिए बिलकुल ही तैयार नहीं. मालूम नहीं इस इंस्टंट ज़माने में लोग अपने आप को और कितना  खींचने  वाले हैं. हर एक बात की तय सीमा होती हैं. बच्चा भी अपने माँ की कोक से पैदा होने के लिए कम से कम 9 महीने  का समय लेता  हैं. लेकिन उसमे में भी कुछ जल्दी हो सकता हैं क्या इस बारे में संशोधन शुरू हुआ हैं.
इस इंस्टंट ज़माने में हर एक बात अलग हैं. बच्चों से लेकर बूढों तक सबको जल्दी हुई हैं. कम समय में पढाई करके जल्द  से जल्द  कोई नौकरी मिले. पैसे भी बहुत जल्दी मिले और एक कामयाब आदमी बनाने का सपना हर कोई संजोये हुए हैं. लेकिन एक बात जरुर हैं. समय से पहले और वक्त से ज्यादा किसीको कुछ नहीं मिलता. यही सबक सबने लिया तो वो बड़ा दिन होगा.

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