शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2010

तेरी बिंदियाँ

देखी जो तेरी बिंदिया
बांवरें मन में प्रीत समाई रे!

उड़ता आँचल, ढलता सावन,
ठंडी अगन, बहती पवन,
झर झर बरसती धाराएँ रे!

जीने की आस, बुझती प्यास,
सुनहरी धुप, चलती सांस,
तुने कैसी लगन लगायी रे!

कत्थई आँखों का ये काजल,
जैसे छाये गहरे बादल,
बारिश की पहली बूंद उतर आई रे!

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