मंगलवार, 19 अक्तूबर 2010

शिकवा

जिस बात का डर था वही हुआ,
हम उनसे बिछड़े आखिर वही हुआ .

कई बार खयाल आया की मुड़ जाएँ,
दुख तो जरुर होगा की रुक जाएँ,
मगर दिल था के मानता नहीं था,
अब जाके मान गया लेकिन क्या हुआ.

अब फिरसे वही होगा,
न नींद होगी न चैन होगा,
अब किसे बताएँगे दिल का हाल,
अब रंज होगा न सुकुन होगा.

जिन्दगी को जो पसंद हैं वही तो होता हैं,
कहाँ आखिर सोचा वो सही होता हैं,
देखते हैं जिन्दगी कहाँ ले जाती हैं हमें,
याफिर आखिर कफ़न में खत्म होता हैं

किस किस से नाराज हो जाएँ,
कोई एक कारण हो तो बताएं,
अब कोई गम नहीं हमें,
खुदा सहने की ताकत दे हमें.

8 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छा प्रयत्न है समीर जी, हिंदी ब्लोगजगत में आप का स्वागत है। मैं ये मान कर चल रही हूँ कि इसकी प्रेरणा मैं रही…॥:)

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  2. bahut khoob farmaya aap ne

    जिन्दगी को जो पसंद हैं वही तो होता हैं,
    कहाँ आखिर सोचा वो सही होता हैं,
    देखते हैं जिन्दगी कहाँ ले जाती हैं हमें,
    याफिर आखिर कफ़न में खत्म होता हैं
    thanx

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  3. Waastvikataa ko ujagar karti ek shaaleen rachna. Jeewan ke behad karib ka bodh.Thanks

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  4. बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ है........ज़िन्दगी को जो पसंद है वही होता है,....बधाई....

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  5. सोच को शब्द देने का सार्थक प्रयास

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  6. aap ne sahi kaha anitaji. aap hi meri prerna hain isme koi do rai nahi.

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  7. शानदार प्रयास बधाई और शुभकामनाएँ।

    -लेखक (डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश') : समाज एवं प्रशासन में व्याप्त नाइंसाफी, भेदभाव, शोषण, भ्रष्टाचार, अत्याचार और गैर-बराबरी आदि के विरुद्ध 1993 में स्थापित एवं 1994 से राष्ट्रीय स्तर पर दिल्ली से पंजीबद्ध राष्ट्रीय संगठन-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान- (बास) के मुख्य संस्थापक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। जिसमें 05 अक्टूबर, 2010 तक, 4542 रजिस्टर्ड आजीवन कार्यकर्ता राजस्थान के सभी जिलों एवं दिल्ली सहित देश के 17 राज्यों में सेवारत हैं। फोन नं. 0141-2222225 (सायं 7 से 8 बजे), मो. नं. 098285-02666.
    E-mail : dplmeena@gmail.com
    E-mail : plseeim4u@gmail.com

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