बचपन के वो दिन याद आते है,
जब संग खेले थे अपने साथियों के साथ,
बहुत शोर मचाया था और डांट भी खायी थी.
गिल्ली, डंडा लेके जब गांव के बाहर,
आम के पेड़ के निचे बैठ के खाए थे,
माँ ने दि हुयी रोटी और बेसन,
जब भी वो देखता हूँ तो माँ की याद आती है.
वीरानसी पड़ी हुई हवेली,
भुत प्रेत की वो अजब कहानियां,
डरावनी लगती थी वो सड़कें,
जब गुजरते थे हम उस तरफसे.
गुड, बेर, मुली, गाजर क्या नहीं था लाया,
जमींदार के खेत से चुपके से जाकर,
आज भी वो सब याद आता हैं,
मानो शहर एक जमींदार सा लगता है.
गांव के पास से बहती हुई नदी,
झरनों से गुन गुन करती कोयल,
कितना सुहावना था मौसम,
आँगन भी लगता था श्याम जी का गोकुल.
आज अपने घर के बाहर जब मै देखता हूँ
बचपन के वो सारा मंजर नजर आते है,
दिवाली की वो रात मेरा गांव कितना जगमगाता था,
हाँ कुछ जरुर शान कम हुई हैं लेकिन आनंद वही हैं.
गुरुवार, 4 नवंबर 2010
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दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंaap ko bhi deepavali ki shubhkamnayen.
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